कभी देखा है नए साल की शुरुआत 11 बज कर 61 मिनट पर हुई हो?
बात हैरान करने वाली है, लेकिन ऐसा होता है.
हमारी ज़िंदगी में इस तरह का अवसर कई बार आ चुका है, जब एक मिनट
60 सेकंड का न हो कर 61 सेकंड का हुआ है. इसे लीप सेकंडकहते हैं.
सबसे पहले ये मौक़ा आया था वर्ष 1972 में. तब वैज्ञानिकों ने एक मिनट को 61सेकंड का कर दिया था और दुनिया की हर घड़ी में बजे थे…. 23:59:60 और फिर नए दिन की शुरुआत हुई थी. आम दिनों में हर घड़ी हमें 24 घंटे के दिन के अंत में 23:59:59 दिखाती है और उसके बाद घड़ी में फ़ौरन नज़र आता है: 00:00:00
लेकिन जब लीप सेकंड का साल आता है, तब घड़ी में 23:59:59 के बाद
00:00:00 नहीं बजता है, तब बजते हैं 23:59:60
आख़िरी बार यही कार्य वर्ष 31 दिसंबर 2016 को किया गया था. जब रात को 11 बज कर 59 मिनट और 61 सेकंड के बाद अगला दिन शुरू हुआ था.
इस तरह की प्रक्रिया को लीप सेकंड जोड़ने की प्रक्रिया कहते हैं.
आख़िर ऐसा क्यों किया जाता है?
वैज्ञानिक कहते हैं कि हमारी धरती की गति पहले से अब ज़्यादा बढ़ गई है. यानी धरती पहले अपनी धुरी पे जिस रफ़्तार से घूमती थी, वो अब तेज़ हो गई है.
और इसका कारण है चांद और सूरज के गुरूत्वाकर्षण का प्रभाव, भूकंप का असर, तेज़ी से बदलता मौसम और मनुष्यों द्वारा पर्यावरण में किए गए बदलाव इत्यादि.
तो जबकि धरती की रफ़्तार बढ़ गई है तो अब एक दिन पूरे चौबीस घंटे का न हो कर कुछ कम हो गया है. यानी हमारे दिन पहले के मुक़ाबले छोटे हो गए हैं.
इसलिए वैज्ञानिकों को किसी भी साल एक दिन को 1 सेकंड ज़्यादा देना पड़ रहा है, ताकि समय में होने वाले बदलाव की भरपाई हो सके और हमारा कैलेंडर समय के साथ चल सके.
लीप सेकंड की वजह से कंप्यूटर की कार्यप्रणाली के बुरी तरह से प्रभावित होने की संभावना है. वैसे अभी तक ऐसा हुआ नहीं है, और अगर हुआ भी होगा तो उसे संभाल लिया गया है. लेकिन आगे ऐसा करना शायद मुमकिन न हो, जिससे काफ़ी गड़बड़ी की आशंका है.
साथ ही ये भी तय नहीं हो पा रहा है कि कब लीप सेकंड की प्रक्रिया की जाए और कब नहीं. क्योंकि धरती की गति हमेशा एक जैसी नहीं रहती, इसलिए कभी कभी साल में दो बार भी इस प्रक्रिया को करना पड़ा है.
अब ये कहना मुश्किल है कि International Bureau of Weights and Measures (BIPM) ने जो फ़ैसला किया है वो कहां तक सही है और कहां तक ग़लत.