ये वर्ष 2016 की बात है. मेरी उम्र तब 60 साल थी. मेरे सीने में दर्द होने लगा और बार बार होने लगा और असहनीय हो गया तो एक दोस्त ने कहा, “तुम्हारा दर्द कोई मामूली दर्द नहीं है. ये एन्जाइना(Angina) है, तुम दिल के डॉक्टर से मिलो.” मैंने ऐटिट्यूड के साथ कहा, “वॉट एन्जाइना? वो क्या होता है? …. ” वो बोला, “लगता है तुम्हारे दिल की नसों में ब्लॉकेज हो गया है, तुम्हें दिल की बीमारी हो गई है. ” मैंने बुरा मानते हुए कहा, “नामुमकिन.”
उसने कहा, “कोई बात नहीं.”
फिर काफ़ी लोगों ने मुझे तरह तरह की सलाहें दीं. कोई कुछ खाने के लिए कहता, तो कोई कुछ पीने के लिए कहता.
फिर मुझे एक बुज़ुर्ग इंसान की बात पसंद आई और मैंने उनकी बात मान कर अदरक, लहसुन, नींबू का रस, सेब का सिरका और शहद का घरेलू नुस्खा तैयार करवाया और उसका सेवन करने लगा. चूंकि मैंने इस नुस्खे के बारे में काफ़ी पढ़ा था, इसलिए मुझे यक़ीन था कि इससे मेरे दिल की नसें खुल जाएंगी, रक्त पतला हो जाएगा और कॉलेस्टेरॉल घट जाएगा. मैंने लगभग साल भर इस दवा का सेवन किया !
फिर जब थोड़ी से मेहनत में भी सीने का दर्द सताने लगा तो मुझे अपने उस दोस्त का ख़याल आया जिसने मुझे एक नए शब्द एंजाइना से परिचित करवाया था.
मैंने सोचा, कभी कभी अपने दोस्त की बात भी मान लेनी चाहिए. और फिर ये तो मेरा ख़ास दोस्त है. तो मैंने उससे पूछा, “कोई है तुम्हारी नज़र में अच्छा दिल का डॉक्टर?”
वो बोला, आजकल दिल के एक डॉक्टर साहब यू ट्यूब (YouTube) में छाए हुए हैं.
वो कहते हैं, “अगर किसी को किसी डॉक्टर ने कहा है कि तुम्हें हार्ट अटैक का ख़तरा है, तुम्हारे दिल की नसों में ब्लॉकेज हो गया है और वो 60 से 90 परसेंट तक पहुंच गया है तो तुम्हें कभी भी हार्ट अटैक हो सकता है, इसलिए तुमको फ़ौरन बाईपास सर्जरी करवा लेनी चाहिए, तो डॉक्टर की बात मत सुनो.”
मैंने चौंक कर कहा, “क्या? डॉक्टर ने ये कहा कि डॉक्टर की बात मत सुनो.”
दोस्त बोला, “उन्होंने इनडायरेक्ट्ली कहा कि डॉक्टर की बात मत सुनो…. बल्कि मेरे पास आओ. तुम्हें ये ख़र्चीला बाईपास कराने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.”
मैंने और हैरान हो कर पूछा…. कहीं वो आयुर्वेदिक या यूनानी डॉक्टर तो नहीं?
“नहीं, नहीं…. वो एमबीबीएस और फिर एमडी भी हैं…”
मैंने कहा, “वाह!”
वो बोला, “तो क्या कहते हो?”
मैंने कहा, “किस बारे में?”
वो बोला, “मिलोगे उस डॉक्टर से.”
“अरे, तुम्हें क्या लगता है कि मेरी नसों में ब्लॉकेज है?”
उसने कहा, “बिलकुल लगता है.”
मैंने कहा, “तो चलो फिर.”
फिर हमने एपॉइंटमेंट लिया. पता चला कि वो सारा देश घूमते हैं और उनके ऑफ़िस या क्लिनिक पूरे देश में फैले हुए हैं. हम मुंबई में रहते हैं. नसीब अच्छा था कि अगले ही हफ़्ते वो मुंबई में आने वाले थे. हमें अगले हफ़्ते किसी दिन का एपॉइटमेंट मिल गया.
उससे पहले हमने यू ट्यूब पर उनका वीडियो देख कर, उनकी सलाह के अनुसार एक सस्ते वाली एंजियोग्राफ़ी (Angiography) भी करवा ली थी. डॉक्टर साहब के मुताबिक ये एंजियोग्राफ़ी भी कारगर होती है.
मैंने वो सस्ते वाली एंजियोग्राफ़ी करवी ली.
जब हम डॉक्टर साहब से मिले तो उन्होंने रिपोर्ट देख कर कहा, “हां, आपकी नसों में दो ब्लॉकेज है, मगर घबराने की कोई बात नहीं. एक चालीस परसेंट है और दूसरा साठ परसेंट.”
मैंने कहा, “तो मैं घर जा सकता हूं डॉक्टर साहब.”
डॉक्टर को ऐसा लगा जैसे मैं मज़ाक कर रहा हूं…
एक पल मुझे घूरने के बाद डॉक्टर साहब बोले, “मगर जल्द ही ये चालीस परसेंट, सत्तर परसेंट और साठ वाला, नब्बे परसेंट भी हो जाएगा…. अगर तुमने अपना लाइफ़स्टाइल चेंज नहीं किया तो…. फिर कभी भी हार्ट अटैक हो सकता है.”
दोस्त बोला, “तो डॉक्टर साहब, क्या करना होगा.”
डॉक्टर गंभीरता से बोले, “न तुम्हें बाईपास सर्जरी करने की ज़रूरत है, न एंजियोप्लास्टी (Angioplasty)… बस लाइफ़स्टाइल चेंज करना होगा, और क्या?”
फिर डॉक्टर साहब ने हमें कुछ दवाइयां लिख कर दीं और कहां, “वो मैडम वहां बैठी हैं, उनसे ये दवाइयां मिल जाएंगी. और हां, आजसे और अभी से तुम्हारे शरीर में ऑयल की एक बूंद भी नहीं जानी चाहिए. तुम्हारा जो भी भोजन घर में पकेगा, उसमें तेल की एक बूंद भी नहीं होगी. नॉन-वेज सब छोड़ना होगा. अगर खाते हो, तो कभी कभी चिकन खा सकते हो पच्चीस ग्राम, लेकिन उसे भी भून कर खाना होगा. तेल की एक बूंद भी इस्तेमाल नहीं करनी है. वरना कॉलेस्टेरॉल तो छोड़ो, कहीं नसों में ट्राइग्लिस्राइड (Triglyceride) बढ़ गया तो ज़िंदगी को बहुत ख़तरा हो जाएगा… और जो दवाइयां मैंने लिख कर दी है, उसे रेग्युलर इस्तेमाल करना होगा. हर रोज़ पैदल चलना होगा. बाहर का खाना बिलकुल बंद, और हां हर महीने, दो महीने में एक बार तुम को ईईसीपी (EECP) करवानी होगी.”
“क्या ईईसीपी….?” मैंने पूछा.
“ये एक नॉन-इनवेज़िव ट्रीटमेंट है, इसे नेचुरल बाईपास भी कहते हैं, जिससे कॉलेटरल (collateral) नसें खुल जाती हैं और रक्त हृदय की ओर स्मूद्ली बहने लगता है, बहुत लाभकारी है.”
मैंने कहा, “ठीक है, करवा लेंगे.”
फिर हम मैडम से मिले. मैडम अच्छे स्वभाव की थी.
बोली…. “बिना तेल का खाना शायद तुम्हारे घर वाले सही तरह से नहीं बनवा सकें. और तुम्हें वो खाने में अच्छा भी न लगे, इसलिए तुम एक रेसिपी बुक ले लो – बिना तेल के स्वादिष्ट खाना कैसे बनाएं.”
मैंने कहा, “ले लेंगे.”
उसने पूछा, “कहां से?”
दोस्त ने कहा, “बाज़ार से.”
मैडम बोली, “बाज़ार जाने की ज़रूरत नहीं, हमारे पास है ये बुक.”
फिर मैडम ने हमें वो बुक ठीकठाक क़ीमत में दे दी और फिर पूछा, “डॉक्टर साहब ने दवाइयां लिख कर दी हैं…?”
“हां” हमने कहा.
वो बोली, “ये दवाइयां किसी भी मेडिकल स्टोर में नहीं मिलेंगी…. सिर्फ़ हमारे यहां ही मिलेंगी…. डॉक्टर साहब ने ख़ुद बनाई हैं.”
फिर मैडम ने बेहतरीन क़ीमत में वो दवाइयां भी हमें दे दीं और कहा, “जब दवाइयां ख़त्म हो जाएं तो यहीं से आ कर ले लेना.”
मैंने पूछा, “मैडम कितने दिनों का कोर्स है?”
मैडम बोली, “ज़िंदगी भर का.”
फिर हम कुछ कहते, मैडम ने एक लीफ़लेट निकाली और कहा, “ईईसीपी ज़रूर करवा लें…ये नेचुरल बाईपास है, बहुत फ़ायदेमेंद है, नसें खुल जाएंगी.”
फिर मैडम ने ईईसीपी की फ़ीस बताई जिसे सुन कर हमारा ख़ून जाम हो गया. मैंने कहा, “मैडम, अगली बार आएंगे तो ईईपीसी का एपॉइंटमेंट ले लेंगे.”
मैडम बोली, “ईईसीपी.”
उसके बाद हम घर गए. मैंने अपना लाइफ़स्टाइल चेंज कर दिया. अब मेरा हर खाना तेल, घी, मक्खन की एक बूंद के लिए तरस गया. पहले पहले तो मैं जैसे तैसे खाने लगा, लेकिन फिर लगा कि यार ये ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी है….बेरंग, बेस्वाद… बेमज़ा… दूसरों को तेल से बना भोजन खाते देखता तो दिल से हज़ारों गालियां निकलतीं…. घर वालों से कहा, कि रेसिपी बुक में देख कर बनाओ खाना… डॉक्टर साहब ने ख़ुद लिखी है, क्यों नहीं बनता तुमसे बिना तेल वाला स्वादिष्ट खाना…!!!
पहले तीन चपातियां खाता था, अब एक चपाती में ही पेट (शायद मन) भर जाता था. मैंने अपने पड़ोसी की बात मान कर चावल खाना भी छोड़ दिया था. महीने भर में ही मेरा वज़न पांच से सात किलो कम हो गया. मुंह सूख गया. गला सूख गया. अंतड़ियां सूख गईं और मैं ख़ुद भी सूख गया. दो महीने में मैं कांटा हो गया.
जो मुझे देखता, अफ़सोस करता. मैंने दावतों, पार्टियों में जाना छोड़ दिया.
लेकिन मैंने भी ज़िद पकड़ ली कि अब तेल घी मक्खन की कोई चीज़ नहीं खाऊंगा.
डॉक्टर साहब की दवाइयां भी जारी थीं.
फिर एक बार मुंबई के बांद्रा स्टेशन की सीढ़ियां चढ़ने का इत्तेफ़ाक हुआ और सीने में उसी असहनीय दर्द का एहसास हुआ. मैंने दिल को समझाया…. “गैस का प्रॉब्लम है.”
दिल ने कहा, “गधे, तू खाना ही क्या खाता है कि तुझे गैस होगा.”
मैंने दिल की बात अपने उसी दोस्त को बताई तो वो बोला, “लगता है तूने परहेज़ करना छोड़ दिया है…. दवाइयां भी नहीं खा रहा है.”
मैंने उसकी माँ की क़सम खा कर कहा, “दवाइयां भी चल रही हैं और वो बदमज़ा, बकवास खाना भी खा रहा हूं मैं… “
दोस्त ने कहा, “तो फिर ये दर्द ऐसे ही किसी और वजह से हुआ होगा…. तू चिंता मत कर.”
मैंने कहा, “ठीक है.”
लेकिन उसके बाद फिर किसी बिल्डिंग की सीढ़ियां चढ़नी पड़ीं और दर्द ने आ दबोचा.
दोस्त ने कहा, चल किसी और डॉक्टर से मिलते हैं.
हम अपने एक और दोस्त की मदद से मुंबई के ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में एक डॉक्टर से मिले.
डॉक्टर साहब का बड़ा नाम था. फ़िल्मी हस्तियां भी उनसे इलाज करवाती थीं.
डॉक्टर साहब ने सस्ते वाली एंजियोग्राफ़ी को देखा तो बोले, “ये रिपोर्ट नहीं चलेगी. आप जिस तरह से अपनी हालत मुझे बता रहे हैं, उसके हिसाब से आपका ब्लॉकेज परसेंटेज ज़्यादा लगता है. आपको फ़ुल फ़्लेज्ड एंजियोग्राफ़ी करवानी पड़ेगी… करवाइए और रिपोर्ट मुझे दिखाइए…”
पैसे बचाने के चक्कर में और ज़्यादा ख़र्चा हो गया. मजबूरन दोबारा एंजियोग्राफ़ी करवानी पड़ी और दोनों ब्लॉकेज ज़्यादा परसेंटेज दिखाने लगे. साठ परसेंटेज वाला नब्बे (90) दिखा रहा था.
कुछ 30, 40 परसेंट वाले ब्लॉकेज भी निकल आए….
हम डॉक्टर से फिर एक बार मिले तो वो बोले, “आपकी मर्ज़ी है, आप चाहें तो दवाओं और परहेज़ से भी काम चला सकते हैं,एंजियोप्लास्टी करवा सकते हैं, या चाहें तो बाईपास सर्जरी करवा सकते हैं.”
मैंने पूछा, “एंजियोप्लास्टी क्या?”
वो बोले, “ट्रीटमेंट के द्वारा आपकी नस में एक स्टेंट यानी एक स्प्रिंग डाला जाएगा, ताकि नस चौड़ी हो जाए और ब्लॉकेज रास्ता न रोक सके. मगर मैं ऑफ़ द रिकॉर्ड ये ज़रूर कहूंगा कि मैं इसके 100% सफल होने की गारंटी नहीं दे सकता.”
दोस्त ने कहा, “हम दवाओं और परहेज़ से काम चला लेंगे.”
मैंने भी हां में सर हिलाया.
डॉक्टर बोले, “ठीक है, मैं दवाइयां लिख देता हूं, लेकिन याद रखें, आपको कोई मेहनत का काम नहीं करना है, न तेज़ तेज़ चलना है, दौड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता, सीढ़ियां चढ़ते वक़्त भी बहुत ध्यान रखें, दो फ़्लोर से ऊपर चढ़ना हो, तो रुक रुक कर चढ़ें, तेल की चीज़ें बिलकुल न खाएं…”
मैं हैरत से उन्हें देखने लगा. मुझे लगा मैं कोल्हू के बैल की तरह घूम घाम कर फिर अपनी जगह लौट आया हूं.
डॉक्टर साहब बोले, “यूं समझो तुम्हारे सीने पर परमानेंट्ली एक बम बंधा हुआ है, जो कभी भी फट सकता है…. उसे संभालना तुम्हारा काम है. मगर घबराने की कोई बात नहीं, बस सावधानी बरतो.”
मैं और मेरा दोस्त एक दूसरे को देखने लगे. फिर मैंने डॉक्टर साहब से कहा, “सर, आप ही सलाह दीजिए…. आप क्या कहते हैं?”
वो बोले, “मेरी तो यही सलाह है कि आप बाईपास करवा लें. महंगा तो है और थोड़ा रिस्की भी है…. लेकिन सारी दुनिया में लाखों लोग करवाते हैं. सबको फ़ायदा ही होता है, मुझे उम्मीद है आपको भी होगा. ईश्वर करे आपकी सर्जरी सफल हो और आप एक नॉर्मल ज़िंदगी गुज़ार सकें.”
दोस्त ने पूछा, “सर आप करेंगे सर्जरी… कितना ख़र्च आएगा?”
“नहीं, मैं तो एक फ़िज़िशियन हूं.” डॉक्टर साहब ने कहा, “ये तो कार्डियक सर्जन का काम है.”
उसके बाद हम दो तीन और डॉक्टरों से मिले, जिनमें दो कॉर्डियोलॉजिस्ट भी थे… सब यही कह रहे थे, कि तुम दवाओं और परहेज़ के साथ भी जी सकते हो, एंजियोप्लास्टी भी करवा सकते हो और बाईपास सर्जरी भी करवा सकते हो… लेकिन चूंकि मेरा एक ब्लॉकेज 90 परसेंट का था, इसलिए सब बाईपास पर ज़ोर दे रहे थे.
आख़िर घर वालों, रिश्तेदारों और दोस्तों की बात मान कर मैंने बाईपास के लिए हां कह दी और वर्ष 2018 में मेरी सफलतापूर्वक बाईपास सर्जरी हो गई.
वो सर्जन जिसने मेरी सर्जरी की थी, उसकी आख़िरी बात मुझे अभी भी याद है, उसने कहा था, “ये मत समझना कि तुमने बहुत बड़ा तीर मार लिया है…. और अब पहले की तरह कुछ भी खा सकते हो, पी सकते हो…. भागम भाग कर सकते हो…. नहीं, तुम्हें सावधानी बरतनी होगी, परहेज़ करना होगा… तेल के खाने से बचना होगा…. वरना….!”